"माँ ताप्ती मंदिर ट्रस्ट मुलताई जि. बैतूल (म. प्र.)"

जानकारी

माँ तापी उद्गम एवं मंदिर का इतिहास

मुलताई नगर म.प्र. ही नही बल्कि पूरे देश मे पुण्य सलिला माँ ताप्ती के उदगम के रूप मे प्रसिद्ध है । पहले इसे मूलतापी के रुप में जाना जाता था । यहां दूर-दूर से लोग दर्शनों के लिए आते है । यहां सुन्दर मंदिर है । ताप्ती नदी की महिमा की जानकारी स्कंद पुराण में मिलती है । स्कंद पुराण के अंतर्गत ताप्ती महान्त्म्य का वर्णन है। धार्मिक मान्यता के अनुसार माँ ताप्ती सूर्यपुत्री और शनि की बहन के रुप में जानी जाती है । यही कारण है कि जो लोग शनि से परेशान होते है उन्हे ताप्ती मे स्नान करनेे से राहत मिलती है । ताप्ती सभी की ताप कष्ट हर उसे जीवन दायनी शक्ति प्रदान करती है श्रद्धा से इसे ताप्ती गंगा भी कहते है । म.प्र. की दूसरी प्रमुख नदी है । इस नदी का धार्मिक ही नही आर्थिक सामाजिक महत्व भी है । सदियों से अनेक सभ्यताएं यहां पनपी और विकसित हुई है । इस नदी की लंबाई 724 किलोमीटर है । यह नदी पूर्व से पशिचम की और बहती है इस नदी के किनारे बरहापुर और सूरत जैसे नगर बसे है । ताप्ती अरब सागर में खम्बात की खाडी में गिरती है ।

मन्दिर की स्थापना और व्यवस्था

समय के साथ मुलतापी का नाम अपभ्रंशित होकर मुलताई हो गया |इस क्षेत्र में भोसले वंश के राजाओ का राज्य था, उन्होंने तापी तालाब का निर्माण किया और बहुतेरे संख्या में मंदिरो का निर्माण किया |

जिस स्थान पर नवीन मंदिर स्थापित है उस स्थल पर पूर्व काल से तापी पूजन स्थल के रूप में चबूतरे पर तीर्थ पुरोहित जोशी परिवार द्वारा उस स्थल पर तापी मैया का पूजन पुरातन समय से किया जा रहा है| उस स्थल पर नवीन माँ तापी की प्रतिमा की स्थापना तत्कालीन मालगुजार भार्गव परिवार द्वारा { माँ तापी से मनोकामना करने पर मनौती पूर्ण होने पर जयपुर से लेकर आई प्रतिमा } ताप्ती मंदिर की स्थापना सम्वत 1991{ सन 1938 ईस्वी} में स्व. श्री राय साहब चुन्नी लाल जी भार्गव एवं उनकी पत्नी श्रीमति ब्रजरानी देवी के कर कमलो से एवं प्राणप्रतिष्ठा पूजन स्व. श्री प्रहलाद राव ( भट्ट) जोशी और उनके पुत्र स्व. गोपालराव् जोशी से करवाई गई थी तभी से नियमित प्रतिदिन पूजन पर्व इत्यादि एवं व्यवस्थाओ का दायित्व का निर्वहन स्व. श्री.गोपालराव् राव जोशी के द्वारा किया गया उनके पश्चात् उनके पुत्र स्व.श्री शेषराव जोशी द्वारा किया जाने लगा | आगे इसी परंपरा का निर्वहन स्व. शेषराव जोशी के पुत्र स्व. दत्तात्रय जोशी द्वारा पूर्ण रूपेण मंदिर सञ्चालन एवं पूजन कार्य किया गया |

उन्होंने सं 1984-85 में भार्गव परिवार की सहमति से मंदिर के जीर्णोद्धार हेतु तापी भक्तो एवं जनता के सहयोग से “तापी मंदिर जीर्णोद्धार समिति” के द्वारा मंदिर का नव निर्माण प्रारम्भ करवाया उसके साथ उनके पुत्र सौरभ जोशी {पांचवी पीढ़ी के रूप में विगत ९२ वर्षो से मैं और मेरे पूर्वज } पूजन कार्य एवं व्यवस्थापन करने लगे |सभी मुख्यपूजन ,महाआरती,वर्ष की चार नवरात्रीपूजन,सप्तशतीहवन,सप्तमीचालीसापाठ , ताप्ती पुराण वाचन , कार्तिक मास पूजन, कार्तिक पूर्णिमा उत्सव पूजन इत्यादि सभी पूजन सौरभ जोशी द्वारा परम्परागत प्रमुख पुजारी के रूप में पुरातन परंपरा के अनुसार निर्विघ्न निर्विवाद संम्पन्न किये जाते रहे है |

समय के साथ बढ़ती श्रद्धालु संख्या के हिसाब से मंदिर व्यवस्था सुधार के उद्देश्य से वैतनिक पुजारियों की नियुक्ति हुई जिसमे अशोक राव चिंचोले जी (संन 2007) से एवं सौरभ धर्माधिकारी(संन 2015) एवं शुभम(पंकज) तिवारी (संन 2016) की नियक्ति की गई |

व्यवस्था वृहद करने और भव्य रूप देने हेतु श्रद्धालुओ को सुविधाओं में वृद्धि के उद्देश्य से {भक्त निवास ,अन्न क्षेत्र ,सर्वांगिक विकास हेतु } सौरभ जोशी जी द्वारा “ ताप्ती मंदिर लोक न्यास ” निर्माण हेतु रजिस्टार लोक नयास के सम्मुख आवदेन दिया गया एवं प्रस्तावित न्यास विलेख बनाया गया था | रजिस्टार के द्वारा न्यास का निर्माण किया गया जिसमे पदेन तहसीलदार अध्यक्ष तथा पदेन नगर पालिका मुख्य अधिकारी(c.m.o.) सचिव के रूप में मनोनीत हुए एवं अन्य सदस्य के रूप सौरभ जोशी, संदीप जोशी, विजय भार्गव ,रामनाथ भार्गव , संजय राजू पाटणकर, गोलू खंडेलवाल, संजय पवार ,राजेंद्र भार्गव सहित अन्य सदस्य (आस्थाई) मनोनीत हुए |

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